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________________ महावीर जयन्ती। [ यह भाषण आपने चैत्र शुक्ला १३ सं० १९७४. ता०५४-१७ के दिन, बड़ोदेके जानी शेरीके उपाश्रयमें, महावीर जयन्तीके समय दिया था।] परम पूज्य प्रवर्तकजी महाराज, मुनिमंडल, सुश्रावक और श्राविकाओ! आजका प्रसंग ऐसा है कि, जिसकी सभाके लिए नवीन सभापति चुननेकी या प्रस्ताव करनेकी आवश्यता नहीं है । श्रमण भगवंत महावीर स्वामीकी तस्वीर प्रमुख स्थानपर विराजमान की गई है, वे ही सबके प्रमुख हैं और हम उनके गुणगान करनेके लिए एकत्रित हुए हैं । प्रतिष्ठित श्रीकान्तिविजयजी महाराज हम सबमें बड़े एवं गुणी हैं। उनकी हाजिरीमें और उनके सामने हम अपना काम चलाते हैं, इस लिए नवीन सभापति चुननेकी कोई आवश्यकता नहीं है। आज भगवान महावीरका जन्म दिन है। हम प्रति वर्ष जयन्ती मनाते हैं । पर्युषण पर्वमें भगवान महावीरका जन्म चरित्र बँचता है और भादवा सुदी १ के दिन उनके जन्म-वाँचनका उत्सव, सारा संघ, प्रत्येक स्थान पर, करता है; मगर वह दिन वास्तवमें जन्म दिन नहीं है । हममें जयन्ती मनानेका रिवाज नया नहीं है। तीर्थकरोंके च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल और मोक्ष ऐसे पाँच कल्याणक होते हैं। हरेक कल्याणकके दिन कल्याण महोत्सव करना चाहिए । वर्तमान चौबीसीमें कौनसे तीर्थकरका कौनसा कल्याणक किस दिन आता है ? यह बात बतानेवाला तख्ता मैंने आज सवेरे ही उपाश्रयमें देखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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