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________________ (१५९) राज्य, मुल्लाजीका मिजाज गरम हो गया । सत्य है जूठा पड़े, कोई उत्तर न मिले तो क्रोध करके लड़नेके सिवा दूसरा क्या करे ? तो भी आचार्यश्रीने शान्त भावसे कहा:-" मुल्लाजी ! गुस्सा न करो । हम काफिर तो काफिर ही सही, मगर क्या एक बातका उत्तर दोगे ? " मु०-शौकसे । ___ आ०-हिन्दुओंका—जिनको आप काफिर बताते हैं-बनानेवाला कौन है ? अपने धर्मके अनुसार बताना हमारी मान्यताकी तरफ़ न देखना। मु०-इसमें कौनसी बात है ! जब कुल कायनात ( सृष्टि ) को बनानेवाला खुदा है तब हिन्दुओंको बनानेवाला भी खुदा ही है। __ आ०-अच्छा मुल्लाजी जरा सोचिए कि, जिन हिन्दुओंको तुम काफिर कहते हो उन हिन्दुओंको खुदाने क्यों बनाया ? क्या वह जानता नहीं था कि ये काफिर मुझसे खिलाफ ( विरुद्ध ) चलेंगे। मुल्लाजी शान्त हो गये और थोड़ी देरके बाद "फिर हाजिर होऊँगा" कह कर चले गये । बाहर जाकर लोगोंसे कहने लगे,-" बेशक ! इनके साथ मेरा मत नहीं मिलता; मगर यदि कोई सच्चा फकीर हो तो ऐसा ही हो; दुनियाकी परवाह नहीं, मकर-फरेब-दगाबाजीसे दूर; खुश मिजाज शान्त स्वभाववाला, गंभीर और सच्चा हो ।” - पहाशयो ! देखा आपने कि मुसलमान भी पीठ पीछे गुण गाने लगा । यह फल किसका है ? यह है गंभीरता और समझानेके उत्तम ढंगका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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