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________________ (१५१) हमारा शोक मनाना सफल हो सकता है। सच कहा जाय तो जयन्तीका उद्देश यही है, केवल बाहरी धूम धाम करनेका नहीं। धूम धाम तो केवल लोगोंके दिलोंको आकर्षित करनेके लिए की जाती है । सभामेंसे एक भाईने अफसोस जाहिर किया है । कुछ अंशोंमें उसका ऐसा करना ठीक भी है, तो भी बम्बईकी जैनोंकी बस्तीके प्रमाणमें और लालबाग स्थलके प्रमाणमें जितने लोग जमा हुए हैं उन्हें देखकर मुझे तो क्या हरेकको प्रसन्नता हुए बिना न रहेगी। मेरा अनुमान है कि, पर्युषणों के या किसी खास बड़े पर्वके दिनके सिवा कभी इतने मनुष्य शायद ही जमा होते हों । हाँ लड्डू और दूधपाक पूरीवाले दिनकी बात जुदा है । ( हास्य ) ___ महानुभावो ! इस शुभ कामके लिए आपने अपना अमूल्य समय खर्च किया है यह वास्तवमें प्रशंसनीय है । मगर यदि सच कहा जाय तो तुमने जो कुछ किया है या करोगे वह तुम्हारे हितहोके लिए है। इसमें तुमने किसी पर अहसान नहीं किया है । अगर इसी तरह थोड़ेमेंसे भी थोड़ा समय निरंतर निकाल कर धर्ममें बिता ओगे तो तुम्हारे आत्माका उद्धार होगा । अन्यथा अगर फुर्सत फुर्सत ही पुकारते रहोगे तो जब तक दम है तब तक फुर्सत न मिलेगी और जब दम निकल जायगा तब तुम्हें कोई यह न पूछेगा कि, तुम्हें फुर्सत है ? ( हास्य) प्रसंगवश मुझे कहने दीजिए कि, माँडवी स्कूल विद्यार्थी मंडलके मैनेमरकी महनतसे विद्यार्थी मंडलने जो काम किया है उसे आप खुद देख चुके हैं। वह स्तुतिके पात्र है । साथ ही अफ्सो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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