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________________ ( १५० ) शासन नायक चरम तीर्थंकर भगवान श्रीमहावीर स्वामीके निर्वाणके समय गौतम स्वामीने जो विषाद किया था, उसका कारण उनका कोई निजी स्वार्थ न था । वह स्वार्थरहित और भक्तिगर्भित था । जिसका फल उत्तरोत्तर सारे कर्मोंको क्षय करनेवाला और मोक्षदायी हुआ । शास्त्रकारोंका कथन है कि, अहंकारोपि बोधाय, रागोपि गुरुभक्तये । विषादः केवलायाभूत्, चित्रं श्रीगौतमप्रभो ॥ सज्जनो ! हमें भी यहाँ इसी प्रकारका शोक प्रदर्शित करना है। जिन महापुरुष के गुणका अनुकरण करके शोक प्रदर्शित किया जाय, उन महापुरुषके गुणोंका जरासा भी अनुकरण न किया जाय तो मैं कहूँगा कि, फोनोग्राफ में और हममें कोई भी अंतर नहीं है । हाँ फोनोग्राफ जड़ है और हम चेतन हैं; अन्यथा फोनोग्राफ में भरी हुई कोई भी चीज जैसे प्रगट हो जाती है वैसे ही हमारे अंदर भरी हुई चीज भी मुँहके द्वारा - भाषणके रूपमें प्रकट हो जाती हैं; मगर उसका अनुकरण और उसपर अमल न करनेसे फोनोग्राफसे जुदा हो, उससे उच्च होनेका अभिमान नहीं कर सकते हैं । इस लिए हमें चाहिए कि हम फोनोग्राफ न बन कर्तव्य कर, उससे भिन्न हो, अपनी चैतन्य शक्तिको इसी प्रकार विकसित करें जिस प्रकार कि ऊपर गौतम स्वामीके उदाहरणमें वर्णन की गई है । सज्जनो ! हमें अब यह विचारना है कि, हम जिन पूज्य प्रातःस्मरणीय स्वर्गीय श्रीमद्विजयानंद सूरि महात्माकी जयन्ती मनानेके लिए आज एकत्रित हुए हैं उनका किस तरह अनुकरण करनेसे 感 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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