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(१३८) जिससे वे धार्मिक और सामाजिक यावत् राज्यकार्यमें भी प्रवीण होते थे । आजकल अपनी कैसी दशा हो रही है सो आपसे छुपी हुई नहीं है । जिसका मुख्य कारण, जहाँतक मेरा खयाल पहुँचता है,. विद्याका अभाव नहीं तो भी कमी तो अवश्य है।
मुझे कहना पड़ता है कि हिन्दुस्तानमें प्रायः क्या हिन्दु, क्या मुसलमान, क्या इसाई, क्या पारसी, क्या आर्य समाजी, क्या सिख, सबके कॉलेज सुनाई देते हैं, परन्तु जैनोंका एक भी कॉलेज-महाविद्यालय नहीं है।
जिस समाजमें सबसे अधिक विद्या-ज्ञानका प्रेम कहा जाता है; माना जाता है उसमें कोटीश्वरोंके विद्यमान होते हुए भी विद्याका क्षेत्र संकचित ही बना रहे, यह थोड़े दुःखकी बात नहीं है ! कमसे कम हिन्दुस्तानमें तीन जैन कॉलेज होनेकी आवश्यकता है। एक गुजरातमें ऐसे स्थान पर हो कि, जिसका लाभ गुजरात, काठियावाड़ कच्छ
और दक्षिण सब ले सकें । एक मारवाड़में ऐसे स्थान पर हो कि जिसका लाभ मारवाड़, मेवाड़, मालवा सबको मिले । एक ऐसे स्थान पर हो कि जिसका लाभ पंजाब, बंगाल, संयुक्त प्रांत आदि सबको मिले।
कॉलेजकी आशा । महानुभावो ! बड़े हर्षकी बात है कि पंजाबमें जैन कॉलेजकी संभावना महोदय सभापतिजीने आपके आगे प्रकट कर ही दी है, तो भी प्रसंग होनेसे पंजाबी भाइयोंको याद दिलानेके लिए स्वर्गवासी गुरु महाराजका उच्च आशय मैं सुना देना चाहता हूँ।
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