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________________ (१३३) धर्मियोंने पूछा कि तुम कौन हो?" उसने कहा-“ मैं काशीकी जैन पाठशालाका अध्यापक ब्राह्मण हूँ।” तब सनातन धर्मियोंने कहा कि,-"यहाँ जैनियोंके साथ शास्त्रार्थ है, क्या तुमने वेदोक्त धर्म त्याग दिया है ? क्या तुम जैनी हो गये हो ?" ऐसा सुनकर विद्यार्थीका चहरा बिगड़ गया और कुछ घबरा गया । तो भी लोभवश मिथ्या बोला कि, मैनें वैदिक धर्म छोड़ दिया मैं जैन हो गया हूँ। तब कहनेकी इजाजत होनेपर भी उससे कुछ न कहा गया । केवल यही कहा कि गुजराँवालाके कलक्टर साहब सभापति हो । २२ प्रबन्ध कर्ता हों कोई अंगरेज मध्यस्थ हो तब शास्त्रार्थ होना चाहिये । सनातन धर्मकी ओरसे पबलिकको सुनाया गया कि शास्त्रार्थ टालनेके लिये यह इनकी बहानेबाजी है । सभामें सिद्ध किया गया कि वेदमें मनुष्यको तथा गौको कदापि मत मारो इनकी रक्षा करो ऐसा साफ २ लिखा है ।प्रमाण दिखाये गये, आत्मारामको मिथ्यावादी, जैनियोंको निर्दयी हिंसक नास्तिक सिद्ध किया गया। तीन चार दिन तक जैनोंको सब प्रकार सभामें बुलाया पर घबड़ाके नहीं आये, डर गये। सनातन धर्मका जय जयकार होके सभा विसर्जन हुई। ब्राह्मण सर्वस्व मासिकपत्र संपादक पंडित भीमसेन शर्मा-भाग-६-अंक १२ पृष्ठ ४५७-४५८ । पूर्वोक्त दोनों अखबारोंके लेखोंको देखकर वाचकवृंद स्वयं विचार कर सकें इस वास्ते यह उद्यम किया गया है, न कि पक्षपात करनेकेलिये । इस वास्ते वाचकवृंदसे सविनय प्रार्थना है कि वे निष्पक्ष पात हो स्वयं निर्णय कर लेवें इति । (विशेष निर्णय नामक पुस्तकसे उद्धृत ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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