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________________ (१३२) और विशेषकर ब्राह्मण मात्रकी खब निन्दा की है। वेदको हिंसादि अधर्म फैलाने वाला कहा है । सब सनातन धर्मी आर्यसमाजी और स्वा० दयानन्दको भी हिंसक अधर्मी लिखा है। पंजाबमें नागरीका प्रचार कम है इससे उस पुस्तकका हाल सब कोई नहीं जानते थे । हुँडेरे जैनियोंने पुजेरोंका खंडन करते हुए अज्ञान तिमिर भास्करका अनुवाद करके दो तीन ट्रेक्ट उर्दू छपा दिये। जिनको देखकर सनातन धर्मी पबलिकमें बड़ी हलचल पैदा हो गई कि सनातन धर्मके वेदादि शास्त्रोमें मनुष्यका तथा गौका मारना लिखा है तो हम वेदको छोड़ देंगे । हुँडेरोंकी चालाकी यह थी कि सनातन धर्मी दलको अपने शत्रु पुजेरोंका विरोधी बना दें तो इन दोनोंमें खूब झगड़ा हो । सो यदि सनातन धर्मी ऐसा कहते कि हम जैनधर्मके सभी फिर्कोको वेदविरुद्ध तथा नास्तिक मानते हैं, हम सभीका खंडन करेंगे तो एक पुजेरोंके साथ झगड़ा कम होता । सो न हुआ किन्तु पुजेरोंसे बखेड़ा बढ़ गया । शास्त्रार्थ होनेकी बात चीत चली । इटावेसे पं० भी० श० और मुरादाबादसे पं० ज्वालाप्रसाद मिश्र तथा मेरठसे पं० गोकुलचंदजी गुजराँवालेमें पहुँचे । गुजराँवालेमें चार दिन बड़े समारोहसे सभा हुई । पहिले दिनकी सभामें कुछ जैन लोग आये। पुजेरे जैनियोंकी ओरसे कोई पण्डित नहीं था । काशीकी जैन पाठशालामें पढ़नेवाला एक ब्राह्मण विद्यार्थी ( जिसने लघु कौमुदी भी ठीक नहीं पढ़ पाई थी ) शास्त्रार्थके लिये आया था। अनुमानसे जाना गया कि कुछ लोभ देके उसे वेद विरोधी बनाया गया था। जब सभामें वह विद्यार्थी बोलनेको खड़ा किया गया तब सनातन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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