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________________ (१२६) होती है। अब समय हो गया, अतएव सभा बन्द की जाती है, कल फिर सभा होगी।" तदनन्तर दोनों पक्षवाले,-" जैन धर्मकी जय !" “ सनातन धर्मकी जय ! " पुकारते हुये सुरक्षित अपने अपने घर गये । सभास्थलमें कोई २ बहादुर अपनी बहादुरी दिखलानेकी चेष्टा करते थे, पर पुलिसने भी बहादुरीका फल हवालातमें बन्द होना पड़ेगा, इत्यादि कहकर शान्त किया। __ दूसरे दिन मुरादाबादके पं० ज्वालाप्रसादजी, तथा मेरठके पं० गोकुलचंदजी आ गये, और सभा की गई । व्याख्यानमें जैनियोंको मनमानी गालियाँ देकर पं० ज्वालाप्रसादजीने विद्यावारिधि पदवीकी सार्थकता दिखला दी ! तथा पं० भीमसेनजी भी अपनी वृद्धावस्थाकी शान्ति दिखलाकर लोगोंको मात करते थे ! बिचारे ढूँढक भाइयोंकी बड़ी दुर्दशा होती थी ! क्योंकि खर्च भी देना और सभामें पण्डितोंकी गालियाँ भी सुनना । अन्तमें, परिणाम यह हुआ कि लोगोंमें अत्यन्त अशान्ति फैल गई। प्रति क्षण मारपीट होनेकी सम्भावना होने लगी, अतएव पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट बहादुरको सब प्रबन्ध करना पड़ा। उन्होंने कहा कि,-" दोनों पक्षवाले लोग, अपने २ पण्डितोंको लेकर, कल सवेरे सात बजे कोतवालीमें हाजिर हो । जज साहब व चटर्जी साहब संस्कृतके जानकार हैं उनके समक्ष तुम्हारा फैसला करा दिया जायगा” ___ यहाँ पाठकोंको यह दिखलाना आवश्यक है कि, जैनोंकी ओरसे पं० भीमसेनशाको एक रजिष्टर पत्र भेजा गया था, परन्तु उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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