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________________ (१२५) अर्थ समझनेकी अच्छी योग्यता रखता हो । पं० भीमसेनजीका यह कहना कि,-" पबलिक मध्यस्थ है, दूसरे मध्यस्थकी आवश्यकता नहीं । " बिलकुल गलत ( अनुचित ) है । गोया पं० भीमसेनजी अपने मुखसे ही सिद्ध करते हैं कि, हम सच्चा शास्त्रार्थ करना नहीं चाहते । यदि योग्य मध्यस्थ नहीं मिल सकते हों, तब तो पं० भीमसेनजीका कहना कुछ मान भी लिया जाता; किन्तु इन्हीं सनातनी भाइयोंने, आर्यसमाजके साथ शास्त्रार्थ करनेके समय, मेयो कॉलेजके प्रिन्सिपल थिबो साहब, तथा क्विन्स कॉलेजके प्रिन्सिपल बेनिस साहबको मध्यस्थ बनानका आग्रह किया था अतएव मैं सम्पूर्ण सभासदोंसे निवेदन करता हूँ कि, वे ही निष्पक्षपात बुद्धिसे विचार करें, ऐसे शास्त्रार्थमें मध्यस्थकी जरूरत है अथवा नहीं ? बलके मध्यस्थका निषेध सम्बधी पं० भीमसेनजीका व्याख्यान, साफ जाहिर करता है कि मध्यस्थके रहनेपर हमारी चालबाजी चलेगी नहीं; किन्तु पोल खुलजायगी।" बस इतना ही जैन पं० ब्रजलालजी कहने पाये थे कि सभापतिने कहा,-" समय हो गया, बोलना बंद करिए।" अभी दस मिनिट पूर्ण नहीं हुए, किन्तु पाँच मिनिट बाकी ( शेष ) थे, अतएव इस अन्यायको देखकर कई लोगोंने कह दिया कि पक्षपात हो रहा है, पर वहाँ कौन सुनता है । बडी जल्दीसे पं० भीमसेनजीने उठकर कहा कि," वादी, प्रतिवादी दोनों यदि चाहें तब मध्यस्थ नियत किया जाता है, हम लोग मध्यस्थको नहीं चाहते हैं, क्योंकि उसमें रिश्वतखोरी ( घूसदेना ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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