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________________ (११९) उक्त फैसले के आने पर श्रीमुनिवल्लभविजयजी ने श्रीमान् नाभा नरेश को एक पत्र लिखा, उसकी अक्षरशः नकल आगे देते हैं । श्रीमान् महाराजा साहिब नाभापति जी जयवन्ते रहें, और रायकोट से साधु वल्लभविजय की तर्फ से धर्मलाभ वांचना, देवगुरु के प्रताप से यहाँ सुखशान्ति है, और आपकी हमेशह चाहेत हैं। समाचार यह है कि आपके पण्डितों का भेना हुआ फैसला पहुँचा । पढ़ कर दिल को बहुत आनन्द हुआ। न्यायी और धर्मात्मा महाराजों का यही धर्म है, कि सच और झूठ का निर्णय करें जैसा कि आपने किया है। कितने ही समय से बहुत लोगों के उदास हुए दिल को आपने खुश कर दिया । इस बारे में आपको बार बार धन्यवाद है। अब इस फैसले के छपवानेका इरादा है, सो रियासत नाभा में छपवाया जावे या और जगह भी छपवाया जा सकता है ? आशा है कि इसका जबाब बहुत जलद मिलेगा । ता० १४-१-१९०६ द० वल्लभविजय, जैनसाधु ॥ पूर्वोक्त पत्र के उत्तर में नाभानरेशकी तरफसे पण्डितों के नाम पत्र लिखा, उसकी नकल नीचे मूजिब है:ब्रह्ममूर्त पण्डित साहिबान कमेटी सलामत-नम्बर ११९३. इन्दुल गुजारिश पेशगाह खास से इरशाद सादर पाया कि बावाजी को इत्तला दीनावे कि जहाँ उन का मनशा हो वहाँ इसको तबअ करावें यह उनको इखतियार है, जो कुछ पंडितान ने बतलाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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