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________________ ( १११ ) प्रतिमा, मन्दिरोंका द्रव्य किसी दूसरेके उपयोगमें नहीं आ सकता। मेरा अभिप्राय क्या है, ठीक समझो । किसी माताके चार लड़कोंमेंसे एक बीमार हुआ। वह ( माता) तीनोंका ख़याल छो कर बीमार लडकेकी शुश्रूषा करती है, तो क्या माताका अभिप्राय तीनों लडकोंके विषयमें अनुचित समझा जायगा ! हर्गिज़ नहीं, बल्कि उचित ही समझा जायगा; क्योंकि तीनों लड़के तन्दुरुस्त हैं, इनकी हानि होनेका सम्भव नहीं । पर यदि बीमारकी खबर माता न लेवे तो हानिकी सम्भावना है और उसका व्यवहार भी अनुचित समझा जा सकता है। सात क्षेत्रोंमेंसे साधनक्षेत्र प्रायः पुष्ट देखने में आते हैं, लाखों रुपये मन्दिरोंके नमा हैं। ऐसा सुनने में आता है। उनपरसे ममत्त्व हटाकर यदि खर्च किया जाय तो हिन्दुस्तान के कुल मन्दिरोंका उद्धार हो सकता है। ऐसी हालतमें साधकक्षेत्र श्रावक श्राविकाओंके उद्धारका विचार न किया जायगा . तो कितना नुकसान पहुंचेगा इसका अनुमान करना भी मुश्किल है। इस लिये बीमार लड़केकी सेवा, शुश्रूषाकी तरह; शिथिल प्रायः श्रावक श्राविकारूप क्षेत्रको मनबूत करनेमें,उसकी रक्षा करने में इस समय यदि अधिक व्यय किया जाय तो मेरी समझसे अनुचित नहीं समझा जा सकता । नदीके समान यह श्रावक श्राविकारूप क्षेत्र परिपूर्ण होगा तो अन्य सब क्षेत्रोंको भली भाँति फायदा पहुंचानेवाला कहो, चाहे पोषक कहो, बराबर हो सकेगा। इस समय जहाँ खर्च करनेकी जरूरत है वहाँ खर्च करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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