SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 680
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०३ ) महाशयो ! अब मैं आपका अधिक समय नहीं लेना चाहता, अपने व्याख्यानको समाप्त करता हुआ इतना कहना अवश्य उचित समझता हूँ कि, श्रावकवर्य गोकलभाई दुल्लभदासने इस सम्मेलन के लिये जो परिश्रम उठाया है और बड़ौदा के श्रीसंघ सम्मेलन में आये हुए सैंकड़ों स्त्री पुरुषोंकी जो भक्ति की है वह सर्वथा प्रशंसनीय है । अंत में अर्हन् परमात्मासे प्रार्थना करता हुआ आपसे कहता हूँ कि, परकल्याण को ही स्वकार्य समझ निरंतर धर्म उन्नतिमें ही तत्पर रहना आपका परम कर्तव्य है । " उपसर्गाः क्षयं यान्ति छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । 66 मनः प्रसन्नतामेति पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ १ ॥ " सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणं : ८८ “ प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम् ॥ २ ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सभापतिजी के व्याख्यान के अनंतर जयध्वनिपूर्वक सभा विसर्जन हुई । " लेखक प्रार्थना । " प्यारे पाठको ! मैं इस सम्मेल में स्वयम् उपस्थित था इसलिये जो कुछ मेरे देखने व सुननेमें आया है वही अपनी लेखनीद्वारा उद्धृत कर आपकी सेवामें निवेदन किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy