SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०२ ) यदि ऐसा न होता तो, इस कार्य में मुझे वह सफलता कदापि न प्राप्त होती जो इस वक्त हुई है, इस लिये आपके इस सेंद् उद्योग और प्रेमका मैं बहुत आभार मानता हूँ । मुनिसम्मेलनमें पास किये गये प्रस्तावों मेंसे आचार संबंधी नियम कोई नवीन नहीं है; क्यों कि, अपने समुदाय में आचार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार जैसा चाहिये गुरुकृपासे प्रायः वैसा ही है; परंतु भविष्य में भी कदाचित् कुछ न्यूनता न हो इस लिये ऐसे प्रस्तावोंका पास करना उचित समझा गया है । जाहिर भाषण देनेसे धर्मकी कितनी उन्नति हो सकती है इस बातका उत्तर समयके आन्दोलन से आपको अच्छी तरहसे मिल सकता है । साथमें यह भी स्मरण रहे कि, सम्मेलन में पास हुए नियमोंको जबतक आप अमल में न लावेंगे तब तक कार्यकी सिद्धिका होना सर्वथा असंभव है । आत्म उन्नति और धर्म उन्नतिका होना कर्त्तव्यपरायणता पर ही निर्भर है । दीक्षा संबंधी जो नियम पास किया है उसकी तर्फ पूरा ख्याल रखना | आजकल जो साधु निंदाक पात्र हो रहे हैं उनमें से अधिक भाग वही है जो शिष्य वृद्धि के लालचसे अकृत्यमें तत्पर हो रहा है । अपना समुदाय यद्यपि इस लांछन से अभीतक वर्जित हैं, तथापि संगति दोषसे भविष्य में भी ऐसे कुत्सित आरोपका भागी न हो इस लिये इसका स्मरण रखना जरूरी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy