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________________ (<<) बढता केश अटक गया. इससे अपनेको यही सार लेना चाहिये कि अपनेकोभी ऐसे प्रसंग पर शांतता रखनी चाहिये । महाराजने अच्छी इस पर पंन्यास श्रीदानविजयजी पुष्टि की थी। प्रस्ताव सत्रहवाँ । नवीन साधुको जबतक पाँच प्रतिक्रमण, दशबैका लिकके चार अध्यन, जीवविचार, नवतत्व और दंडक अर्थ सहित न हो जावें, तबतक व्याकरणआदि अन्य अभ्यास में नहीं जोड़ना । प्रस्ताव अठारहवाँ । साध्वियो और गृहस्थियोंके पास कपड़े न धुलवानेका जो रिवाज अपने में है, उसको वैसा ही कायम रखना, और अन्य कोई मुनि उपरोक्त काम करता हो तो उसको मिष्ट भाषणद्वारा हित शिक्षा देकर उस कामसे छुड़ाने का प्रयत्न करना । करनेवालेको परभवमें क्या सजा होगी ? वह तो अतिशय ज्ञानी ही जानते हैं; मगर पापका फल थोड़ा, या बहुत, इसलोकमें भी मिल जाता है । इस शास्त्रीय नियमानुसार विनाशकाले विपरीत बुद्धिः इस मुजिब क्षमाप्रधान साधुओं पर हमला करता करता कितनेक गृहस्थों पर भी मोहन लल्छुने अपने हैंडबिल में अनुचित्त शब्दोंसे हमला किया ! जिसका तात्कालिक फल अमदावादकी अदालतसे तीन प्रेसवालोंको और मोहन लल्लुको सजा मिलचुकी है ! ( लेखक ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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