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________________ भूल स्वीकार करेंगे। इमलिये अपनी कमजोरीको छोड़कर चुस्त बनो ! मेरी यह खास सूचना है कि, हरएक साधु अपने संघाड़ेके आलावा भी जो हो, याने श्वेतांबर संप्रदायके हरएक साधुको गुजरात तथा मोटे २ शहरों परसे मोह ममत्व छोड़कर गामोंमें जहाँ कि साधुओंका विहार नहीं और जहाँ साधुओंके लिये श्रावक लोक अपने यहाँ पधारनेकी पुकार कर रहे हैं ऐसे स्थानों में साधुओंका विहार होना चाहिये । ऐसे स्थानों में विहार होनेसे बड़ा ही लाभ होनेका संभव है। नीतिकारोंका कथन है कि-अति सर्वत्र वर्जयेत्-क्षीरान्नसे भी किसी वक्त चित्त कंटाल जाता है ! बरात वगैरह जिमणवारोंमें जहाँ नित्यप्रति मिष्टान्न ही भोजन मिलाता है वहाँ भी मिष्टान्नसे अरुचि होती नजर आती है । मैं नहीं कह सकता कि यह बात कहाँतक सत्य है। मगर मेरा ख्याल है कि, अगर पाँच सात वर्षपर्यंत साधु साध्वी अनुग्रह दृष्टिसे क्षेत्रोंके ममत्वको त्याग मरु मालवा मेवाड़ादिकी तर्फ सु नजर करें तो उमीद है कि दिनोंकी पुष्टिद्वारा धर्मोन्नति अधिकसे अधिक होवे । एक तर्फ उपराउ.परी भोजन मिलनेसे अजीर्ण वृद्धि होती है उसकी रुकावट होजानेसे अनीर्णकी शांतिद्वारा तंदुरुस्त हालतसे पुष्टि होगी। और दूसरी तर्फ भोजनका सांसा पड़नेसे भूखमरेकी शांतिद्वारा तंदुरस्त हालतकी प्राप्तिसे पुष्टि होगी । अन्यथा याद रखना ! जितनी आजकल साधु साध्वियोंकी बेकदरी हो रही है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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