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बनायाथा | आजतो प्रतापी नामदार गवर्मेन्ट सरकार अंगरेज बहादुर के राज्यमें साधुओंकों बिहार के साधन ऐसे सुलभ हैं कि, जी चाहे वहाँ बेधड़क विचरते फिरें । किसी प्रकारका भय नहीं है। ऐसे शासनमें अगर चाहो तो उनसे भी अधिक कार्य कर सक्ते हो; लेकिन, अफसोसके साथ कहना पड़ता है कि, उन्नति करनी तो दूर रही, हाँ अवनतिका रस्ता तो पकड़ा ही हुआ है । जरा पालीतानाकी तर्फ ख्याल करो । तीर्थकी आड़ लेकर कितने साधु साध्वी दरसाल वहाँके वहाँही समय गुजारते हैं। कभी बहुत जोर मारा तो भावनगर, और उससे अधिक अनुग्रह किया तो अहमदाबाद, बस इधर उधर फिर फिरा, फिर पालीतानाका पालीताना । श्वसुर गृहसे पितृगृह और पितृगृहसे श्वसुरगृह ज्यादा जोर मारा कभी मातुलगृह ( मोसाल - नानके) के जैसा हाल हो रहा है ! वहाँ
आकर पानी आदिकी शुद्धि कितनी और किस प्रकार रहती है सो साधु साध्वी क्या श्रावक श्राविका भी अच्छी तरह जानते हैं कि, राग दृष्टिके वश हो भक्ति के बदले भुक्ति की जाती है ! यदि वह साधु साध्वी जुदे जुदे स्थानोमें चतुर्मासादि करें, तथा, अन्यान्य देशमें विहार करें तो, कितना बड़ा भारी लाभ साधु साध्वी और श्रावक श्राविका दोनों ही पक्षको होवे ! बेशक! मेरा कहना कइयों को नागवार गुजरेगा मगर न्यायदृष्टिसे सोचेंगेतो यकीन है कि वो स्वयं अपनी
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