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(६०) अमलमें लानेकी पूर्ण आवश्यकता है। परंतु व्यवहार दृष्टिसे मालूम होता है कि, “ श्रेयांसि बहु विनानि" इस नियमानुसार बीचमें आफतके पहाड़ भी खड़े हैं; क्यों कि साधु सम्मेलनकी शुरूआत करनी और निरंतर अमुक समयके बाद सम्मेलन होना चाहिये, ऐसा सिलसिला जारी रखना यह काम साधुओंकी हालकी स्थिति तथा संकुचित वृत्ति आदिकी तर्फ ख्याल करनेसे सुगम नहीं मालूम होता । क्यों कि ऐसे सम्मेलनों द्वारा होनेवाले फायदोंकी तर्फ दृष्टि किसी पुण्यशाली पुरुषकी ही होती है । सम्मेलनोंद्वारा किये हुए नियमोंको जब अमलमें लानेकी आवश्यकता होती है तब उस तरफ बिलकुल दुर्लक्ष जैसा दिखाई देता है । जहाँ. ऐसी स्थिति हो वहाँ सम्मेलनोंद्वारा हुए नियमोंको यथार्थ मान मिलना और उनका उत्साहपूर्वक पालन करना असंभव नहीं, परन्तु मुश्किल तो अवश्य है । अस्तु । ऐसा होनेसे अपनेको निराश होना नहीं चाहिए । प्रयत्न करना अपना कर्तव्य है और इस कर्तव्यकी तर्फ उत्साहपूर्वक लगे रहेंगे तो कभी न कभी अवश्य सफलता प्राप्त होगी। ____ मान्य मुनिवरो ! ममाने हालमें विद्या प्राप्त करनेके अनेक साधनोंके होनेपर भी कितनोंने, उच्च विद्या प्राप्त की, यह छिपा हुआ नहीं है। उस जमानेकी तरफ खयाल करो कि, जिस समय महामहोपाध्याय न्यायविशारद श्रीमद् यशोविनयजी तथा
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