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मकान बनाना, ये तीनों काम त्याज्य हैं । जो इन तीनोंको रखते हैं वे साधुतासे कोसों दूर हैं । साधु कहलानेवालेको कमसे कम अपने वेषकी विडम्बना पर तो अवश्य ध्यान देना चाहिए ! इस लिए संसार और आत्माकी भलाई में तत्पर रहकर सादी सरल निष्कपट और सच्ची जिन्दगी बसर करना साधुताका सच्चा स्वरूप है ।
सज्जनो ! मैंने जो कुछ कहा है वह किसीपर आक्षेप बुद्धिसे नहीं कहा, मैंने केवल वस्तुस्थिति पर आपके सामने विचार किया है | अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच यमोंको यथावत् पालन करनेवाला साधु, तथा राग और द्वेषसे सर्वथा मुक्त देव एवं उसका कहा हुआ धर्म, इन तीनों रखोंको परीक्षापूर्वक ग्रहण करना ही मनुष्य के वास्ते उचित है । उक्त रत्नत्रय ही आत्मिक शान्ति देनेवाले हैं; और येही सार्वजनिक धर्मके मूल स्रोत हैं और इन्हीका नामान्तर सबका हितकारी सुखकारी सार्वजनिक धर्म है ।
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सभ्यो ! मैंने आज आपका बहुतसा समय लिया है मगर परस्पर धार्मिक विचारोंमें समयका व्यय करना उचित ही है । मेरे कथनपर आप लोग कुछ विचार करनेकी उदारता दिखावेंगे ऐसी आशा रखता हुआ मैं अब अपने व्याख्यानको समाप्त करता हूं || ॐ शान्तिः ३ ॥
शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः ॥ दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवन्तु लोकाः ॥
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