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इसी तरह मुसलमान भाइयोंके धर्म पुस्तकमें भी मनुष्यको उपदेश देते हुए कहा है कि - " तू अपने पेटको पशु पक्षियोंकी कबर न बना" तथा ईसाइयोंको भी आज्ञा की गई है कि, तू हिसा मत कर । तू मेरी तरह पवित्र होकर रह ! तू जंगलके किसी भी पशुका मारकर उसका मांस न खाना । सूक्ष्म विचारसे देखें तो मांसाहारकी छूट किसी भी धार्मिक ग्रंथमे आपको न मिलेगी ।
सज्जनो ! सूक्ष्म विचारको छोड़ स्थूल दृष्टिसे ही विचार किया जाय तो भी मांसाहार आपको युक्तिसंगत प्रतीत न होगा । आप लोग न्याय मंदिरमें बैठे हुए हैं, इस लिए आशा ह कि, न्यायको अपने हृदयये अवश्य स्थान देंगे। जब कोई हिंदु मर जाता है तो उसके साथ स्मशान में जानेवाले आदमी अपने आपको अपवित्र समझते हुए स्नान करते हैं, और कपड़े धोते हैं । अब विचारना चाहिए कि, मुर्दे के साथ जाने अथवा स्पर्श करने मात्र से अपवित्रता आ जाती है ! तो क्या मुर्देको पेटमें डालने से डालनेवाला पवित्र रह सकेगा ? ( करतल ध्वनि ) एक भी लहूका छींटा बदन पर या कपड़े पर पड़ जाय तो मांस खानेवाले महाशय उसे मलमल कर धोते हैं, मगर अफसोस कि, उसी रुधिर लहूके लोथड़े ( मांस ) को अपने पेटमें डालते हुए अणुमात्र भी नहीं हिचकते ! (तालियाँ) हमारे मुसलमान भाई अपने पवित्र धाम मक्का शरीफकी यात्रामें
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