SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१) जरूर रखना चाहिए कि, केवल नाम मात्रसे सिद्धि नहीं हो सकती, केवल राम नाम उच्चारण मात्रसे कुछ नहीं बनता, किन्तु उनके आचरणोंको अपने हृदयमें अंकित करके अपने आचरणोंमें निर्मता लाते हुए यदि नामका स्मरण पूजन किया जाय तब ही उद्धार हो सकता है । हरएक मनुष्यको यह समझ लेना चाहिए कि, संसार में जो सामान्य जीव था वह उक्त ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रनत्रयीके अनुष्ठानसे समस्त कर्मोके क्षय द्वारा उन्नतिको प्राप्त होकर परमात्म दशाको प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार यदि मैं भी उसी मार्ग पर चलूँ तो मैं भी किसी समय वैसा ही हो सकता हूँ ! अर्थात् जिस निरतिशय आनंदको वे आत्मा प्राप्त हुए हैं वह वस्तु सत् कर्मके अनुष्ठान द्वारा मेरे लिए भी अवश्य साध्य है। सद्गृहस्थो ! मनुष्य जन्म चिन्तामणिके समान है। इसे प्राप्त करके इससे लाभ उठाना ही विशेष बुद्धिमत्ता है। अब चाहे तो इससे लाभ उठा लो, और चाहे इससे वृथा खो दो, यह आपका अखत्यार है । बस इतना ही कह कर मैं अपने व्याख्यानको समाप्त करता हूँ । क्योंकि अब सूर्यास्त होनेका समय बहुत ही निकट आ गया है, इस लिए धर्मके नियमको मान देकर व्याख्यानके सार पर विचार करनेके लिए आपसे अनुरोध करता हुआ अपने कथनको विराम देता हूँ। ॥ ॐ शांति ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy