SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 585
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८ ) " कदाचित आपके चले जाने के पीछे ढूंढ़िये कहें कि पूजेरे साधु भाग गये, इसलिये यावत् ढूंढिये साधु यहां न आवें और कोई निर्णय न होजाय, तावत् आपका यहां से जाना उचित नहीं । हमारी इस प्रार्थना को महात्माओं ने सानंद स्वीकार किया और कहा कि तुम निश्चिंत रहो यावत ढूंढिये साधु आकर यहां से विहार न कर जांयगे तावत् हम यहां से न जांयगे, परंतु उन का विहार कैथल से समाना की ओर होना चाहिये । इस पर समाना के तीन आदमी साधु सोहनलाल और मयाराम आदि को शहर समाना में लानेके लिये केथल गये और कैथल से विहार कराकर अपने साथ ले आये, और ९ मार्च १९०४ बुधवार को सोहनलालजी शहर समाना में आगये, उनके सेवकों ने उनसे चर्चा के वास्ते कहा जबकि अनुमान ९७ क्षत्रिय, ब्राह्मण, महाजन भी विद्यमान थे । सोहनलाल जी के वार्तालाप से यह प्रकट हुआ कि वह चरचा से सर्वथा विमुख हैं क्योंकि साधु वल्लभविजयजी ने कहा था कि दो वा चार पंडितों को मध्यस्थ करके खुले मकान मैं चरचा की जाय । सोहनलालजी ने इस पर यह उत्तर दिया कि हम अपने स्थान को छोड़कर दूसरे के स्थान पर नहीं जासक्ते, जिसको कोई शंका हो वह हमारे यहां आकर शंका दूर कर ले, पंडितों की कोई जरूरत नहीं, पंडित लोग क्या जानते हैं ? यह सुन वहां बैठे हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय, महाजन गुस्से में आये कि बड़े • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy