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________________ मुनिश्रीवल्लभविजयजी की जयपताका अथवा ढूंढकमतपराजय शहर समाना रियास्त पटियाला के ब्राह्मण क्षत्रिय महाजन जिनको यद्यपि जैनमत से कोई संबंध नहीं परंतु सत्य के प्रकट करने में कोई हानि न समझ कर सर्व साधारण को विदित करते हैं कि हमारे इस शहर में तारीख ५ फरवरी सन् १९०४ शुक्रवार के दिन महाराज श्रीआत्मारामजी की समुदाय के साधु, मुनि श्रीहीरविजयजी आदि ४ साधु पधारे और भावड़ों के मुहल्ला व मकान में जो तबेले के नामसे मशहूर है उतरे, प्रतिदिन कथा हुआ करती थी, एक दिन कथा में देवीचंद के पुत्र सुरजनमल भावडा दुग्गड गोत्रीयने कई क्षत्रिय महाजनों के समक्ष प्रतिज्ञा की, कि मैं सोहनलालनी साधु की साधु वल्लभविजयजी के साथ चर्चा कराऊँगा । यदि सोहनलालनी चर्चा न करेंगे तो मैं ढूंढ़िया पंथ छोड़ दूंगा, इस पर भावड़ों के सिवाय हम लोगों ने साधु मुनिराजों से प्रार्थना की कि यद्यपि आपका महीना पूरा होनेवाला है और हम लोग यह भी जानते हैं कि साधु किसी खास कारण के विना एक मासोपरांत नहीं ठहरते, किंतु यह भी एक धर्मका कार्य है, धर्म के वास्ते अधिक ठहरने में कोई हानि नहीं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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