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आदर्श-जीवन ।
wwwmarrrrrrrrrमन आपसे बार बार पूछता,-इस तरह कबतक रहोगे ? कोई जवाब न मिलनेसे अन्तरात्मामें एक दर्द पैदा होता । इस स्थितिका अन्तलानेके लिए आपका मन इसी तरहसे तड़पताथा जिस तरहसे पानी में डूबनेवाला आदमी बाहर निकलने के लिए तड़पता है।
वोह कौनसा उदो है जो वो हो नहीं सकता ? हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता ?
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पेठ । मैं बोरी ढूँढन गई, रही किनारे बैठ ॥
आप हमेशा सोचते कि,-किस तरह इस बातका फैसला हो ? किस तरह मैं इस झंझटसे निकलूँ ? एक दिन इसी तरह सोचते सोचते आपके चहरेपर प्रसन्नता छा गई। आप सहसा बोल उठे,-हाँ यह मार्ग बहुत अच्छा है। एकान्तमें बैठकर
आपने तीन पत्र लिखे । उनमेंसे एक खीमचंदभाईके नाम था जिसे रजिस्ट्री कराके भेना; दूसरा सेठ हीराभाई ईश्वरदासके. नामका था और तीसरा था सेठ गोकुलभाई दुल्लभदासके नामका । दोनों डाकमें डाल दिये । पत्रों में लिखा था कि,-अमुक दिन. मेरी दीक्षा होनेवाली है । आप दीक्षा महोत्सव पर अवश्य पधारें।
१ कठिन बात; २ हलहोना...
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