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________________ आदर्श जीवन । (२२) पुज्य आचार्य सूरी जी बल्लभ विजयजी उपाध्याय सोहन विजय जी आदि ठाणा । मुंबई थी ली० नाना भाई बेन रुकमणी परिवार सहित १००८ वंदना अवधारशोजी । आपने संघे आचार्य पदवी आपी ते जाणी अमारा मनने घणा हर्ष पूर्वक आनंद थयो छे, आचार्य पदवी थवानी ते अत्रे कोईने पण खबर न होती श्रीसंघ ना तार थी खबर थई छे आनंद थयो छे । ता. २२-१२-२४ ५११ ( २३ ) स्वस्ति श्री लाहोर महा शुभ स्थाने अगणित गुण गणालंकृत गात्र परम पात्र मुनि महाराजाओ ना सिरताज छत्रीस गुणेकरी विराजमान आचार्य महाराज श्रीमान् विजयवल्लभ सूरि जी महाराज सपरिवार नी सेवा मां । मुंबई थी ली० आपना आज्ञाकारी सेवक पानाचंद प्रेमचंद तथा मोहनलाल पानाचंद तथा पदमशी पानाचंद आदि सकल परिवार नी वंदना १००८ बार अवधारशोजी. Jain Education International आप साहेबनी आचार्य पदवी ना समाचार मने बहुज मोडा मळया छे, तेथी तार करावी शक्यो नथी. आपनी आचार्य पदवी थी आखा संसार ने अपार हर्ष थयो छे, स्वर्गवासी श्री आत्माराम जी महाराजनी हयाती थीज आप भाव थी तो आचार्य छो, द्रव्य थी संसार नी रूढ़ी प्रमाणे हमणा आप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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