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________________ आदर्श जीवन। ५०१ स्याद्वाद पूर्ण जिनपागमपारदश्वा, मूरीश्वरो विजयताम् मुनिवल्लभोऽयम् ॥१॥ स्वस्ति श्री पार्थ जिनं प्रणम्य मुनिवृन्द चरण रज परि पुनित महाशुभस्थाने लाहोर नगर मध्ये शांत, दांत, त्यागी वैरागी, परमप्रभावक, शासनधोरी मुनिगणमार्तड, शासन सम्राट, वादिगजकेसरी, निग्रंथचूडामणि शांतमूर्ति, कलिकाल कल्पवृक्ष, विद्वद्रत्न, व्याख्यान कला कोविद, अनेक सिद्धांत पारगामी, श्री जैन शासन प्रबोधपंकज सहस्ररश्मि मूरिपुरंदर, मरिचक्र चक्रवर्ति, इत्यादि अनेक गुणालंकार विभूषित पूज्यपाद आचार्य महाराज श्री विजयवल्लभ मूरीश्वर जी ना चरणारविन्द युग्ममां, श्रीवेरावल बंदर थी ली? मूरि दर्शनोत्कंठित समस्त संघनी १००८ वार वंदणा अवधारशो जी, विशेष अमने जाणीने आनंद थयो छे के श्री सघे लाहोर मां आप साहेब ने सूरीश्वरनुं पद प्रदान कर्यु छे अने ते पद आपनी शासन सेवानी प्रवृत्ति, शासन सेवानी निशदिन उत्कंठा, जैन शासन नो विजय वावटो फरकाववानी आपनी अभिलाषा अने आपना उत्तम स्वभाव मां सोनुं अने सुगंध जेवी योग्यता ने पामे छे, अमो खरे खर मानी शकीये छोये के श्री संघे योग्य महात्मा ने योग्य स्थान आप्यु छे तेथी आप श्री ने समर्पल मूरि पद सवथा योग्यज छे अने ते शुभ खबर मलतां अमे बहु आनंदीत थया छीये, विशेष आप साहेबजी अमोघ उपदेश द्वारा जगत ने पावन करता सौराष्ट्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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