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________________ आदर्श जीवन । मल्ल से ज्ञात हुवा कि थोड़े दिन हुए जैनसमाज ने श्रीमानों को जैनाचार्य की पदवी से सत्कृत किया है, मैं सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। यद्यपि आप जैसे महात्मा पदवी की या उपाधि की इच्छा नहीं रखते तथापि हम सबका कर्त्तव्य है कि उनका सत्कार करते हुए अपनी कृतज्ञता बतलायें, बहुधा ऊँची पदवी आप जैसे महात्माओं के शुभनाम के साथ ही शोभा प्राप्त करती है। विनीत हीरानंद शास्त्री. बीकानेर। ता.१४-१२-१९२४ श्रीमान् मान्यवर सद्गुणालंकृतधर्मनिष्ठ परोपकार व्रत परायण विद्यावारिधि जैनाचार्य श्री १००८ श्री वल्लभविजयजी महाराज आचार्यजी महोदय योग्य जयदयाल शर्मा का सविनय प्रणाम प्राप्त हो । श्रीमानों को आचार्य पद की प्राप्ति सुनकर चित्त को अत्यंत ही प्रमोद प्राप्त हुआ। वास्तव में यह पद आप जैसे विद्यावारिधि सौजन्यादि गुणाकर महानुभावों के योग्य ही है। श्री सर्वक्ष प्रभु से मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि आप चिरायु होकर अपने सद्ज्ञान विद्या आदि सद्गुणों के द्वारा देश का चिर समय तक कल्याण करें। जयदयाल शर्मा शासी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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