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आदर्श जीवन ।
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चौमासेतककी मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण हो लेवे उसकेबाद निरंतर एकासना न करूँगा; परंतु जहाँतक मेरा वश चलेगा छूटे मुँह भी न रहूँगा । अष्टमी चतुर्दशीका उपवास तिथिको एकासना तो जैसा चलता है चलता ही रहेगा। बाकीके दिनोंमें बेसना -दो वक्त आहार करता रहूँगा। अब और कुछ कहना है तो ‘वह भी कह दे।"
पंन्यासजी महाराजने कहा:-" जब तक मैं आपकी सेवामें वापस न आऊँ तबतक आप दश द्रव्य कायम रक्खें, निर्वाह छःसे या चारसे चाहे जितने द्रव्योंसे आपकी इच्छा के अनुसार कर लेवें; परन्तु दशसे कमती द्रव्यकी प्रतिज्ञा न करें। आपने जो मीठेकी प्रतिज्ञा की है उसके पूर्ण करनेमें मेरी शक्ति और भक्तिका भी कुछ अंश स्वीकरनेकी अर्ज है।"
आपने इन सब बातोंको सहर्ष मंजूर किया । चौमासे बाद पंन्यासजी महाराजने सीधा बंबईकी तरफ विहार किया
और गुरुकृपासे ठीक धारे हुए समय पर बंबई पहुँच गये। अहमदाबादसे पं०श्रीउमंगविजयजी महाराज, मुनि श्रीनरेन्द्रविजयजी महाराज और मुनि श्रीअमर विजयजी महाराज भी सपरिवार इनके साथ आये थे। - पं० ललितविजयजी महाराजके बंबई पहुँचते समय बंबईके श्रीसंघको आपने एक पत्र भेजा था, जो इस. मुजिब था।
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