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________________ आदर्श जीवन। Al0/ था। व्याख्यानमें दस बारह हँढिये श्रावक आये थे। उन्होंने आकर आपसे कई प्रश्न किये । आपने उनमेंसे कुछको उत्तर दिया; मगर उन्हें विवाद करते देख कर आपने फर्माया:-"यदि तुम्हारे गुरुओंकी इच्छा शास्त्रार्थ करनेकी हो तो महाराज गंगासिंहजी और अन्यान्य कुछ पंडितोंको मध्यस्थ नियत कर मुझे शास्त्रार्थके दिन और स्थानकी सूचना दो । यदि तुम स्वयं ही विवाद करने आये हो तो यह प्रतिज्ञा कर लो कि, यदि मैं शास्त्रानुसार तुम्हारे प्रश्नोंका सन्तोष कारक उत्तर दे दूंगा तो तुम पुजेरे बन जाओगे ?।" वे यह कह कर चले गये कि, हम विचार कर उत्तर देंगे। अब तक आतेही हैं। इस तरह सं० १९७८ का पैंतीसवाँ चौमासा बीकानेरमें समाप्त कर मार्गशीर्ष वदी ५ के दिन शामको तीन बजे आपने वहाँसे विहार किया और उदासर पधारे । उदासरमें एक जिनमंदिर है । शहरमें एक चैत्यमें प्रतिमाजी थे। बड़ी आशातना होती थी, क्योंकि वहाँके सभी श्रावक तेरह पंथी थे । आपने उन्हें समझाकर प्रतिमाजी सेठ सुमेरमलजी आदिके सिपुर्द कराई । उन्होंने प्रतिमाजीको मंदिरजीमें लाकर बिराजमान किया । वहाँ तीन नौकारसियाँ हुई थीं । बीकानेरके ढाई हजार आदमी आपके दर्शनार्थ आये थे। उदासरसे विहारकर आगे एक गाँवमें पधारे और एक कुन्बीकी झोंपड़ीमें निवास किया । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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