SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । नागौरसे विहार कर आप दो तीन स्थानोंमें ठहर वहाँके लोगोंको धर्मामृत पिला बीकानेर पधारे । __ चैत्रसुदी ९ सं०१९७८ के दिन बड़ी धूमधामसे आपकानगर प्रवेश हुआ । करीब ढाई हजार स्त्री पुरुष सामैयामें आये थे। आपने चौरासी गच्छके उपाश्रयमें जाकर मुकाम किया । वहाँ आपने भगवती मूत्र वाँचना प्रारंभ किया। जिस समय भगवती मूत्र शुरू करनेकी बात हुई उस समय लोग कहने लगे कि महाराज हम लोग इसको समझ न सकेंगे; मगर जब आपने पहले दिन भगवतीका व्याख्यान किया तब सभी वाह वाह करने लगे। व्याख्यानमें करीब डेढ हजार स्त्रीपुरुष हमेशा आते थे। वहाँ उपाश्रयके पास एक ब्राह्मण : नका नाम है मंगलचंदजी भादाणी । लखपति आसामी हैं। उन्हें आपके उपदेशसे ऐसा रंग लगा कि, वे गृहिणी सहित पक्के भक्त हो गये। उन्होंने सप्त व्यसनका त्याग किया, कंदमूल तीन सालतक नहीं खानकी प्रतिज्ञा ली और नित्यदेव दर्शनका नियम किया। उस चौमासेके लिए उन्होंने रात्रिभोजनकी भी प्रतिज्ञा ले ली। जगद्पूज्य श्रीहरिविजय मूरिजी महाराजकी जयन्तीका प्रारंभ भी आपने उसी साल प्रेरणा करके, सारे हिन्दुस्थानमें कराया । आपने भी बडे उत्साह पूर्वक वहाँ जयन्ती मनाई। ... कोचरोंके आपसमें तनाजेके कारण दो धडे थे । वे भी आपके उपदेशसे टूट गये । भाग्यशाली धर्मात्मा सेठ सुमेरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy