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________________ ३५४ आदर्श जीवन। गया था; मगर आपने इन्कार कर दिया । बालीमें पं० जी श्रीसोहनविजयजी महाराजके पास मुनि श्रीललितविजयजी, मुनि श्रीउमंगविजयजी और मुनि श्रीविद्याविजयजीने भगवती मूत्रका योगोद्वहन किया था। उन्हें पंन्यास पदवी देना था इस लिए सं० १९७६ का तेतीसवाँ चौमासा सादड़ीमें समाप्त कर आप वाली पधारे । बालीमें बड़े समारोहके साथ आपका नगर प्रवेश हुआ । वहाँ मार्गशीर्ष वदि २ के दिन श्रीयुत कपूरचंदजी और गुलाबचंदजी बालीनिवासी ओसवालको हमारे चरित्रनायकने दीक्षा दी। दोनोंके नाम क्रमशः देवेन्द्रविजयजी और उपेन्द्रविजयजी रक्खा गया। पहले उमंगविजयजी महाराजके और दूसरे विद्याविजयजी महाराजके शिष्य हुए। मार्गशीर्ष वदि ५ के दिन मुनि श्रीललितविजयजी महाराज, मुनि श्रीउमंगविजयजी महाराज और मुनि श्रीविद्याविजयजी महाराज तीनोंको गणि और पंन्यास पद, पंन्यासजी श्रीसोहनविजयजी गणिने प्रदान किये । उसी दिनसे तीनों महात्मा पंन्यास कहलाने लगे। इस तरह आपके परिवारमें चारों पंजाबी पंन्यास बने । बालीके ओसवालों और पोरवाडोंमें तीन तड़ें थीं। वे कभी परस्पर साधर्मी वात्सल्यमें भी शामिल नहीं होते थे । इस अवसर पर हमारे चरित्रनायकके उपदेशसे तीनों साधर्मीवात्सल्यमें एकत्र हुए। यहाँसे आप वापिस सादड़ी पधार गये; क्योंकि सादड़ीमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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