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________________ ३४० आदर्श जीवन । -~~~~~~~~~~~~~ एक पाठशाला खोलो और उनमें अपने बच्चोंको पढ़ाना शुरू करो।" सभी श्रावक उठ कर नीचे आये; क्योंकि हमारे चरित्रनायक पहली मंजिलमें ठहरे हुए थे, उन्होंने बहुत देरतक सलाह मसलहत की, एक चिट्ठा बनाया । उसमें रकमें भरी गई। करीब साठ हजार लिखे गये । फिर वे ऊपर आये और आपके सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गये । एकने आपको चिट्ठा बताया और कहाः-" गुरुमहाराज ! अभी इतनीसी रकम हुई है। एक लाख तक सादडीका चंदा हो जायगा। दूसरे गाँवोसे भी इतना ही हो जायगा । आशा है आप. अब यहीं चौमासा करनेकी कृपा करेंगे।" आप श्रावकोंका इतना उत्साह देखकर प्रसन्न हुए और बोले 'तथास्तु । श्रावक लोग खुशीसे उछल पड़े और केशरियानाथकी जय' 'जैनधर्मकी जय ' 'गुरु महाराजकी जय' 'वल्लभविजयजी महाराजकी जय' बुलाते हुए अपने अपने घर चले गये। . __आपने पं० श्रीसोहनविजयजी एवं मुनिश्री ललितविजयजीको पाली पत्र लिखा कि-" सादड़ीके श्रीसंघने मारवाड़का अज्ञानांधकार दूर करनेका बीड़ा उठाया है । एक लाखकी रकम सादड़ीसे हम पूरी कर देंगे ऐसी बोली श्रीसंघने की है । साठ हजार तो लिखे जा चुके हैं। इस उत्साहके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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