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________________ आदर्श जीवन और एक सिपाही तथा वोलावी. सहित वहाँ जा पहुँचे । लुटेरोंने आकर सबको घेर लिया। आपने उनसे कहा:-"हम साधु हैं। हमारे पास कुछ नहीं है । '' आदि । मगर उन्हें तो उस समय क्रोध आ रहा था आप पर परिसह होनेका भविष्य था इस लिए उन्होंने कुछ नहीं सुना। वे बोले:-" शीघ्र ही जो कुछ है वह रख दो, वरना मार पीठकर हम ले जायँगे।" रोहीडेके श्रीसंघका भेजा हुआ आबूजीसे एक गजपूत सिपाही आपके साथ आया था । लुटेरोंकी बात सुन कर उसे गुस्सा आया । वह तलवार निकालने को तैयार हुआ। एक लुटेरेने उसे देखा । उसने उसके सिरमें छुरीका आघात किया। वह बेबस होकर जमीनपर आरहा । लुटेरोंने उसकी तलवार और उसके कपड़े छीन लिये ।। ___ हमारे चरित्र नायकने एक एक करके अपनी सभी चीजें दे दी। दूसरे साधुओंने भी अपने स्थापनाचार्य, पुस्तकें, पात्रे, वस्त्रादि रख दिये और कपड़े भी उतार दिये । लुटेरोंने पुस्तकें और पात्रोंके सिवा सब कुछ ले लिया। उमंगविजयजीके और तपस्वीजीके तो स्थापनाचार्य भी ले गये । जब वे जाने लगे तब तपस्वीजीने उनसे पुस्तकें व पात्रे बाँधनेके लिए कुछ कपड़ा माँगा । लुटेरोंने दो फटेसे टुकड़े दे दिये । साधुओंने उसीमें पुस्तकें व पात्रे बाँध लिए। जाते समय लक्ष्मीचंद हंसाजीके पाससे भी जो कुछ था ले. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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