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________________ आदर्श जीवन। ३२३ पूज्यवर्य केवल संतानके संसारी सुखके लिये युद्धमें लाखों पुरुष अपने प्राण त्याग रह हैं तो क्या सारी जाति को मोक्षमार्ग पर लेजानेको हमारे त्यागी मुनिवर सामान्य 'परिसहोंसे भय भीत होकर इस प्रान्तमें आने तथा विचरनेसे हिच किचावेंगे ऐसी हमें कदापि आशा नहीं है । पूर्वकालमें इस प्रान्तमें मुनिगण विचरते थे और अब भी स्थानकवासी साधु विचरते हैं । तो क्या आप लोगोंके लिये विचरना इस प्रान्तमें अधिक दुष्कर है ? पूज्यवर्य शासनोन्नतिके लिये, धर्मकी रक्षाके लिये, जैन जातिको वास्तविक जैन जाति फिरसे बनानेके लिये सुनिवरोंके कठिन परिश्रमकी आवश्यक्ता है । इस लिये राजपूतानेके श्रीसंघकी इस कॉन्फरेन्सके द्वारा आपसे सविनय प्रार्थना है कि इस चातुर्मासके समाप्त होने पर इस तरफ पधारनेकी कृपा करें और इस प्रान्तके ग्राम २ व नगर २ को सवज्ञके वचनोंसे गुंजावें और लोगों में धर्मके प्रति जागृत श्रद्धा उत्पन्न करके कि जो उन्हें सत्य मार्ग पर चलनेको मजबूर करे, श्रीसंघका तथा संसारका कल्याण करें। यह भी सविनय प्रार्थना है कि इस कल्याणकारी कार्यके लिये किसी ग्रामसे निमंत्रण आनेकी बाट न देखें। पूज्यवर्य, अग्निमें सोनेकी, संकटमें वीरधीरकी और परिसहमें धर्म दृढताकी परीक्षा होती है । इत्यलम् ।। १०८ शान्तमूर्ति श्रीहंसविजयजी महाराज साहिबने पंन्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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