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________________ ३२२ आदर्श जीवन । भाँति छोड ही देंगें तो शासनको बड़ा नुकसान पहुँचेगा। इस जैन धमकी हानि और जातिके हासका उत्तर दायित्व आप पूज्योंके सिर ही रहेगा। कारण आप धर्मनेता हैं, धर्मरक्षक हैं, धर्मगुरु है, संघके लिये गोपाल हैं । और ऐसी दशा में उत्तर दायित्व सिवाय मुनिगणके किस पर हो सकता है ? पूज्य वर्य, यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्रमें परिसह बहुत हैं । इस क्षेत्रमें गर्मी बहुत पड़ती है। बालू रेतमें पैर जलते हैं कई गाँवोंमें समय पर आहार तो दूर रहा पानी तक की जोगवाई नहीं मिलती। श्रावकोंमें आदर भक्ति नहीं इत्यादि अनेक बातें इस प्रांतके विषयमें कही जा सकती हैं। पर पूज्यवर्य क्या यह परिसह कानोंमें कीलियाँ ठोके जानेसे, अथवा बियाबान जंगलमें, शीत उष्णमें ध्यानावस्थामें खड़े रहनेसे अथवा सपसे डसे जाने अथवा कपाल पर अग्नि जलाई जानेसे भी आधिक कठिन है। परमात्मा महावीर आदर्श हैं, मोक्ष उद्देश है, सांसारिक दुख सामने हैं तोक्या उन मुनिवरोंको कि जिन्होंने कश्चन, कामिनी तथा अन्य संसारी सुखोंका त्याग करके चारित्र अंगीकार किया है उन्हें स्वयं मोक्ष जानेसे तथा श्रीसंघके कल्याणके लिये प्रयास करनेसे कोई परिसह रोक सकता है ? कदापि नहीं । पूज्य वर्य यदि मुनिथोड़ीसी देरके लिये अपने उद्देश तथा प्रभुके वचनों और संघके कल्याणकी ओर ध्यान दें तो हमें विश्वास है कि वे इस प्रान्तसे ऐसे उदासीन रह ही नहीं सकते जैसे वे इस समय हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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