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________________ ३१८ आदर्श जीवन। आज प्रायः सर्व ही प्रान्तोंमें पाई जाती है-यह जन्म स्थान ही है। किसी कालमें तो इस प्रान्तके ग्राम २ में मुनिराजों तथा साध्वियोंका चातुर्मास तथा विहार हुवा करता था, पर खेदके साथ लिखना पड़ता है कि अर्वाचीन कालमें जैन जातिके इस बड़े भागकी ओरसे हमारे परम पूज्य, धर्मनेता मुनिगण उदासीन ही हो बैठे हैं । जहाँ गुजरात प्रान्तके एक एक नगरमें बीस २ मुनिगण चातुर्मास करते हैं, जहाँके छोटे २ ग्राम निवासी भी मुनिगणोंके सदुपदेशसे भरे हुवे अमृत बचनोंका सदैव पान करते हैं, वहाँ यह जैन श्वेताम्बर जातिका घर न जाने किस हीन कर्मोदयसे मुनिगणों द्वारा केवली भगवानके तारनेवाले वचनोंसे निरा वंचित ही रहता है । ग्रामोंका तो कहना ही क्या बड़े २ नगर भी मुनिगणोंके चातुर्माससे बरसों खाली रह जाते हैं । पूज्यवर्य जिनशासनके लिये इसका नतीजा अति अहितकर हुआ है । संघमेंसे भक्ति, श्रद्धा, तथा धार्मिक ज्ञान दिन प्रति दिन कम होता जाता है । जैनधर्मके तत्वोंसे तो लोग अनभिज्ञ ही हो गये हैं। कई जिन मंदिर अपूज, बेसम्भाल पड़े हैं। धर्मसे प्रेम तथा धर्मश्रद्धा कम होते जाते हैं । स्वधर्मी वात्सल्य, लोकसेवा, धर्मप्रचार, परोपकार इत्यादि सम्यक्त्वके गुणोंका दिन २ हास हो रहा है । धर्म कार्यों में पैसा खच नहीं होता वरन् उसके विपरीत पाप कार्योंमें पैसा दिल खोल खर्च किया जाता है। धर्मानुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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