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________________ आदर्श जीवन । ३१५ इस बातकी कितनी सावधानी रखते हैं कि, कोई ऐसी बात न बने जिससे सामान्य स्थितिके लोगोंके दिलोंमें उपाश्रयमें आते झिझकन पैदा हो और वे धर्मध्यानसे वंचित रहें। __ अहमदाबादका चौमासा सदा स्मरण रहे इस हेतुसे आपने शान्त मूर्ति १०८ श्री हंसविजयजी महाराजके परम भक्त सुशिष्य, पंन्यासजी महाराज श्री संपत्तिविजयजीकी प्रेरणासे अन्तिम तीर्थकर भगवान श्रीमहावीर स्वामीकी पंचकल्याणक पूजा बनाई थी। उस चौमासेमें आपके साथ तेरह साधु थे उन के नाम ये हैं (१) मुनि श्रीमोतीविजयजी (२) मुनि श्रीविवेकविजयजी (३) मुनि श्रीकीर्तिविजयजी पंडित (४) मुनि श्रीउत्तमविजयजी ( ५ ) मुनि श्रीललितविजयजी (६) मुनि श्रीनायकविजयजी (७) मुनि श्रीकस्तूर विजयजी (८) मुनि श्रीकीर्तिविजयजी (९)मुनि श्रीविज्ञानविजयजी (१०) मुनि श्रीतिलकविजयजी (११) मुनिश्रीविद्याविजयजी (१२) मुनि श्रीविचारविजयजी (१३) मुनि श्रीउदयविजयजी। ___ अहमदाबादमें आपके पास बीकानेरके श्रीसंघका बड़ा ही भक्तिपूर्ण एक विनतीपत्र आयाथा उसे हम यहां उद्धृत करते हैं, " + + + आपके दर्शनोंकी अभिलाषा बहुत बरसोंसे लग रही है। मगर हमलोगोंके अभाग्य और अन्तराय कर्मके कारण आपका आना इधर कभी नहीं हुआ। पंजाब और गुजरातके अहो भाग्य हैं जो आप सत्पुरुषोंका हर वक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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