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________________ ३१४ आदश जीवन। उस दिन सधर्मी भाइयोंके उद्धारके विषयमें उत्तर दिया था। वे अपनी खुशीसे चाहे हजारों खर्च देंगे मगर हमारे जैसोंके माँगने पर तो वे एक रुपया देनेमें भी सौ नुक्स निकालेंगे। आप-" तो फिर संतोष कर लो, या आपने उपाश्रयका ममत्व छोड़कर जो श्रावक यहाँ व्याख्यान सुनने आते हैं उनसे सलाह करके काम करो। मैं कह देता हूँ कि, चंदा बिलकुल न करना । यदि तुम्हारी सम्मति हो और जौहरी भोगीलाल ( मंगलभाई ) कीकाभट्टकी पोलवाले पूँजाभाई आदि भाग्यवान बैठे हैं, इनकी इच्छा हो तो, ये एक एक दिनकी पूजा आदिका खर्चा स्वीकार कर लें। आठ भाग्यवानोंके मिलजानेसे अठाई महोत्सव आनंदसे हो सकता है। अपनी अपनी पूजाकी सामग्री अपने आप इच्छानुसार उत्साह पूर्वक मँगवा लेंगे। स्नात्री आदि भी हरेककी पूजामें उनके घरके आ जायँगे । मैं समझता हूँ इस तरह हरेक को अधिक श्रानंद प्राप्त होगा। इस बातको सुनकर मंगलभाई, पूँजाभाई आदि भाग्यवानोंने बड़े आनंदके साथ एक एक दिन स्वीकार कर लिया। श्रीमहावीरस्वामीके मंदिरमें अठाई महोत्सव धारणासे भी अधिक उत्साह और आनंदके साथ हुआ। उपर्युक्त घटनासे पाठक समझ सकते हैं कि, आपके हृदयमें सामान्य स्थितिवालोंके लिए कितना खयाल है। आप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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