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________________ आदर्श जीवन। आप-" क्या इसकी खास जरूरत है ?" श्रावक ---" हमारे शहरमें रिवाज है कि, जिस उपाश्रयमें अधिक तपस्या हो उस उपाश्रयमें आनेजानेवालोंका फर्ज है कि, वे चंदा करके पासके जिन मंदिरमें अठाई महोत्सव करें।" ___ आप-" यह तो बड़ी ही अच्छी बात है । प्रभु भाक्तिके बराबर और श्रेष्ठ बात क्या होगी ? भक्ति करना आपका कर्तव्य है। मगर जो मार्ग आपने ग्रहण किया है वह मुझे बिलकुल पसंद नहीं है । मैं नहीं चाहता कि, मेरे साथके साधुओंकी तपस्याके लिए इस तरहसे अठाई महोत्सव होवे ।" श्रावकोंने जरा घबराहटके साथ पूछा:-" साहिब ! आपका आशय हम नहीं समझे । " अपनी उपधि किसी दूसरेको न दी । इतनी तपस्याएँ और ऐसा विहार करके भी कभी किसीसे वैयावच्च नहीं कराई । बलिहारी है इस तपस्याकी ! ___ वैशाख सुदी ३ (अक्षय तृतीया) के दिन अठाईके साथ, इस बरसी तपका 'जंडियालागुरु' नामक गाँवमें, श्रीऋषभदेव स्वामीकी छत्रछायामें इन्होंने आनंद पूर्वक पारणा किया । बीचमें फाल्गुन चौमासेकी अठाई की थी और चैत्रकी ओलीमें नौ उपवास किये थे। ___ इस साल, यानी सं. १९८२ का, इनका चौमासा हमारे चरित्रनायकके साथ ही गुजराँवालेमें है । यहाँ नौ नौ उपवास पूर्वक एक एक पदकी आराधना इस प्रकार नव पदजीकी ८१ उपवाससे आराधना करनी शुरू की है । बीचबीचमें और आसोज सुदी पूर्णिमाके बाद जो छूटी छूटी तपस्या होगी वह जुदा । ज्येष्ठ सुदी ५ से तपस्या शुरू की है और कार्तिकी पूर्णिमातक तपस्या चलती रहेगी । यह तपस्वीजीवन धन्य है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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