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________________ आदर्श जीवन। - - -, AAAAAAAA AAAAA. उमड़ रहे थे; उस समय एक दिन व्याख्यानमें टीप-चंदालिखी जाने लगी। आपने पूछा:-" यह चंदा किस लिए किया जाता है ?" श्रावकोंने उत्तर दियाः-" साहिब ! तपस्वीजी महाराजकी तपस्याकी निर्विघ्न समाप्तिके उपलक्षमें अठाई महोत्सव किया जायगा।" पाँच उपवास करके पारणा, फिर तीसरे पदके सात उपवास करके पारणा, चौथे पदके सात उपवासका पारणा, पाँचवें पदके नौ उपवासका पारणा और छठे पदके आठ उपवासका पारणा करके ७, ८ और ९ वें पदके ८+८+९ कुल पचीस एक साथ ही करते रहे। इस तरह कुल ६८ उपवास किये, उनमें पारणा केवल छः ही बार किया। सिद्धि तपके ४५ उपवास होते हैं । वे इस तरह किये जाते हैं, एक उपवासका पारणा करके फिर दो उपवास करना, दोका पारणा करके तीन करना, इस तरह नौ उपवास तक क्रमशः बढ़ना । सादड़ी और शहर लाहोरमें इन्होंने यह सिद्धि तप किया। सादड़ीमें इस तपको पूर्ण करनेके बाद एक साथ इक्कांस उपवास किये थे और लाहोरमें सिद्धि तपके अन्तिम आठ और नौ उपवास मिलाकर सत्रह उपवास एक. साथ किये थे। अंबालेके चौमासे बाद हमारे चरित्रनायक जब सामानेकी प्रतिष्ठा कराके मालेरकोटला पधारे थ तब वहाँ इन्होंने चैत्र कृष्णा ८ से तले तेलेके पारनेस बरसी तप प्रारंभ किया । विहारमें भी यह तप जारी ही रहा । अर्थात् तेले तेले ही पारणा करते रहे । इस बरसी तपके चालू रहने पर भी होशियारपुरके पर्युषणोंमें इन्होंने सोलह उपवास एक साथ कर डाले । __पर्युषणके बाद हमारे चरित्रनायक जब काँगड़ाकी यात्रा करने पधारे तब ये भी साथ थे । इस पहाड़ियोंके विकट विहारमें भी ये तेले तेले ही पारणा करते थे। दस दस और पन्द्रह पन्द्रह माइलका विहार होता था ऐसी दशामें भी ये अपनी उपधि-कपड़े, पुस्तक, पात्रे आदि सब चीजें-अपने आप ही उठाते रहे, कभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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