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आदर्श जीवन ।
श्रीसोहनविजयजीके प्रयत्नसे २५००० का चंदा हुआ । गोड़ीजीमें ये समाचार पहुँचे । वहाँ भी रकमें भरी जाने लगीं और इस तरह महावीर जैन विद्यालयके लिए एक लाखका चंदा हो गया ।
इस तरह सं० १९७४ का इकतीसवाँ चौमासा बंबई में समाप्त कर आपने प्रवर्तकजी महाराजके साथ ही सं० १९७४ के माघ सुदी १३ शनिवार के दिन गोड़ीजीके उपाश्रयसे विहार कियो । भायखाला पधारे। आपने बंबईके चौमासेमें पंचतीर्थी पूजा बनाई थी। वह पूजा यहाँ पढ़ाई गई । करीब दो हजार स्त्री पुरुषोंने लाभ उठाया ।
हमारे चरित्रनायकने अब सीधे पंजाबकी तरफ विहार करना स्थिर कर लिया था इस लिए, भायखलामें, प्रवर्तकजी महाराजसे विदा ग्रहण कर अपने परिवार सहित आपने वहाँसे विहार किया और ग्रामानुग्राम उपदेशामृत की वर्षा करते हुए कहीं भी अधिक स्थिरता न कर पंजाब पहुँचनेकी धुनमें आगे ही बढ़ते चले । परन्तु स्पर्शना बलवती होती है। आपको विचार आया कि मार्गमें ही १०८ श्री मुनि महाराज शांतमूर्ति श्रीहंसविजयजी महाराजजीके दर्शन कर लेवें और उनसे मिलकर जावें तो ठीक होगा । दूर चले जानेके बाद इन वृद्ध महात्माके दर्शन दुर्लभ हो जायँगे । मनका साक्षी मन होता है !
इवर आपके मनमें यह विचार आया उधर उन महात्माका, शान्तमूर्ति मुनि श्री १०८ श्रीहंसविजयजी महाराजका, - पत्र
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