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________________ २९८ आदर्श जीवन । प्रवर्तकजी महाराजने मंगलाचरण करके फर्मायाः" गुरुमहाराजका खजाना तो ( आपको बताकर ) इनके पास है । ( हँसकर ) इन्होंने मेरी कीमत करनेके लिए मुझे यहाँ ला बिठाया है।" सभी हँसने लगे। फिर प्रवर्तकजी महाराजने व्याख्यान फर्माया। चौमासे भरमें करीब महीने सवा महीनेतक प्रवर्तकजी महाराजने व्याख्यान वाँचा था । प्रवर्तकजी महाराजकी स्मरण शक्ति बड़ी प्रबल है। सांसारिक अनुभव और ऐतिहासिक घटनाओंका खजाना जैसा इन महात्माके पास है वैसा किसीके पास नहीं है। हमारे चरित्रनायकपर तो इनका इतना प्रेम है जितना पिताका अपने एक गुणसंपन्न पुत्रपर होता है । यदि कोई आपपर किसी तरहका आक्षेप करता है तो इनके अन्तःकरणमें ऐसा ही आघात लगता है जैसा अपने प्रिय पुत्रपर करनेसे होता है। ____ यहाँ हम एक दो उदाहरण देंगे। एक बार छाणीमें अमुकने प्रवर्तकजी महाराजसे कहा:-" आपको वल्लभाविजयजीने भ्रमा रक्खा है । वास्तवमें अमुक बात ऐसी है। आदि ।" प्रवर्तकजी महाराजने फर्माया:-" मैं वल्लभविजयजीको तुमसे ज्यादा जानता हूँ। उन्हें बचपनहीसे मैं पहचानता हूँ। उनके गुण अवगुणसे, तुम्हारी अपेक्षा अधिक, मैं परिचित हूँ।" वे बोले:-" आपका तो उनपर मोह है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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