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________________ आदर्श जीवन। २६३ विनती करनेके लिए सुरत आवेंगे । आप कृपा करके सूरतसे आगे न पधारें। __ आपने फर्माया:-" अच्छी बात है । फाल्गुन तक मैं तुम्हारी राह देखुंगा, फिर मेरी इच्छा ।" ___ आप बगवाड़ेसे विहार कर वलसाड, पारडी, बिलीमोरा नवसारी आदि छोटे बड़े गाँवों में होते उपदेशामृत बरसाते और धर्मका जयजयकार कराते हुए सूरत पधारे । सूरत में बड़े समारोहके साथ आपका नगरप्रवेश हुआ। महा वदी ५ सं १९७१ के दिन सूरतकी गोपीपुरावाली श्रावककी नई धर्मशालामें जौहरी नगीनचंद कपूर चंदकी तरफसे उद्यापन निमित्त शांतिस्नात्र पूजा थी। साधु साध्वी और श्रावक श्राविकाओंसे उपाश्रय भरा हुआ था। वयो वृद्ध पंन्यासजी महाराज ( सांप्रत आचार्य महाराज १०८ श्रीसिद्धिविजयजी भी विराजमान थे । उस समय हमारे चरित्रनायकने स्त्रीशिक्षाके संबंधमें एक प्रभावोत्पादक व्याख्या न दिया था और असहाय श्राविकाओंके लिए एक श्राविका श्रम खोलनेकी आवश्यकता बताई थी । इस व्याख्यानका यह प्रभाव हुआ कि, वहीं आश्रम स्थापित करना निश्चित हो गया और उसके लिए साढ़े चार हजार रुपये उसी समय जमा हो गये । उस व्याख्यानका कुछ उपयोगी अंश हम आत्मानंदप्रकाशसे उद्धृत करते हैं: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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