SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । त्राहि त्राहि पुकार उठा है । ऐसी दशामें धर्मकी रक्षाके लिए इस बातकी हद से ज्यादा जरूरत है कि आधुनिक सभ्यताका पाठ पढ़नेवालोंको साथ ही धार्मिक पाठ भी पढ़ाये जायँ; धर्मका वास्तविक स्वरूप आधुनिक सभ्यताकी आँखोंसे दिखाया जाय जिससे लोग इस बातको भली भाँति समझ जायँ कि, धर्म और आधुनिक सभ्यतामें कितना अन्तर है ? वे समझ जायँ कि जितना अन्तर सूर्य और जुगनूमें है; जितना अन्तर प्रकाश और अंधकारमें है; जितना अंतर सोने और पीतल में है; जितना अन्तर गुलाब और गूलरके फूलोंमें है उतना ही अन्तर धर्ममें, जैनधर्ममें, मनुष्य धर्ममें और स्वार्थपर वर्तमान सभ्यतामें है । यह बात हमारे चरित्रनायकने भली भाँति से बंबईके श्रावकोंके हृदयमें बिठा दी । श्रावकोंने भी इस बातको कार्यरूपमें परिणत करनेका प्रयत्न प्रारंभ किया । समाचार पत्रोंमें इस बातके प्रकाशित होनेपर अनेक मुनिमहाराजाओंने भी आपके पास प्रशंसाके पत्र भेजे थे । उनमेंसे एक यहाँ उद्धृत किया जाता है । ता. ३०-७-१३ २५६ २४३९ आ० १८ Jain Education International २४३९ १८ वंदे वीरम् मु० अंबाला सिटी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy