________________
आदर्श जीवन।
mini
////
///
/
/HIND
INAINANIN/HIN/IN/M/NIRAL1/1/3/
/
mmmmmmmmmmm.in.
सं० १९७० के आषाढ़ महीनेमें मांगरोल जैन सभा की तरफसे एक सार्वजनिक सभा लालबागमें बुलाई गई थी। उसका विषय था-'सात क्षेत्रोंमें पोषक क्षेत्र कौनसा है ?" इसमें आपने यह सिद्ध किया है कि, श्रावक क्षेत्र ही सबका पोषक है इस लिए पहले इसको परिपुष्ट करना आवश्यक है । यदि यह परिपुष्ट होगा तो अन्य छहों क्षेत्रोंका इसके द्वारा पोषण हो सकेगा । पूरा व्याख्यान उत्तरार्द्धमें दिया गया है।
इस चौमासेमें अठाई महोत्सव, शान्ति स्नात्र, पूजा प्रभावना आदि धर्म कार्य अच्छे हुए । उपधान भी हुए । उपधानमें यह विशेषता थी कि, किसीके सिर किसी तरहका कर नहीं था। गरीब अमीर सब एक दृष्टिसे देखे जाते थे। क्रिया करानेवाले साधुओंको क्रियाएँ करा देनेके सिवा और किसी बातसे मतलब नहीं था।
जमाना है नाम मेरा तो, सबको दिखा दूंगा।
जो तालीमसे भागेंगे, नाम उनका मिटा दूंगा ॥ संसारमें शिक्षाके बिना किसीका काम नहीं चल सकता; न धर्म सध सकता है और न व्यवहार ही । वर्तमानमें तो इसकी आवश्यकता अत्यधिक बढ़ गई है। चारों तरफ शिक्षाकी पुकार है । जमाना विकासकी तरफ आगे बढ़ता जा रहा है। धर्म और वर्तमान सभ्यतामें बड़ा भारी संघर्ष हो रहा है। आधुनिक सभ्यताका जोर इतना अधिक हो गया है कि, धर्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org