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________________ आदर्श जीवन । २४७ 10.-..-Roma n AmAhampannada करनेके लिए, यहाँ पर पहुँच गये हैं। आप कहीं न रुककर आज ही यहाँ आजायँ तो अच्छा है। कारण नांदोदसे बक्षीके भाई आये थे । वे आपके लिए दो दिन ठहर कर कल गये हैं । आज डेप्युटेशनके तौर पर बहुतसे लोग आनेवाले हैं इस लिए कहीं ठहरना नहीं । " श्रीहंसविजयजी महाराजकी सूचनानुसार आप मियागामसे रवाना हुए और प्रतापनगरमें आपके साथ उनकी भेट हुई। नांदोदके राजाका दीवान वहीं आपके स्वागतार्थ आया था। वहाँसे मुनि महाराज श्री १०८ श्रीहंसविजयजी पंन्यासजी महाराज श्रीसंपतविजयजी और आप नांदोदके लिए रवाना हुए । आपके साथ पाँच सात साधु दूसरे भी थे। नांदोदसे करीब आध माइल जब आप रहें होगे तब नांदोद महाराजका सारा राजसी लवाजमा १०८ श्रीहंसविजयजी महाराज तथा आपके स्वागतार्थ आया। छोटेसे कस्बेमें जितनी अच्छी तरहसे स्वागत हो सकता था उतनी ही अच्छी तरहसे स्वागत हुआ । स्वागतके जुलूसमें डभोईका संघ भी अपनी भजनमंडली सहित शामिल हो गया था। इससे जुलूसकी शोभा और भी ज्यादा बढ़ गई थी। नांदोदके राजाने व्याख्यानके लिए एक खास मंडप बन वाया था। सारे नांदोदमें फिरकर जुलूस वहाँ समाप्त हो गया। नांदोदके राजाने तीनों महात्माओंको और अन्यान्य मुनिराजोंको सादर अभिवंदन किया। मुनिराजोंको ऊँचे आसनपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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