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________________ आदर्श जीवन । श्रीवल्लभविजयजीके उपदेशसे हमारे परिणामोंमें परिवर्तन हुआ । इस लिए उस रिवाजको बंद करनेके लिए हम आतुर होकर महाराज साहबके रूबरू बाधा ( प्रतिज्ञा ) लेनेको तैयार हुए हैं । २३४ (२) विशेष हम पाटन अहमदाबाद आदि परदेशों में कन्याएँ देते थे । वे भी - अभीसे कन्याओंको बाहर देना बंद करते हैं । * इतना होकर भी यदि कोई जातिकी इच्छाके विरुद्ध होकर अपराध करेगा तो वह आदमी जातिबाहर समझा जायगा । उसके साथ कोई किसी भी तरह का व्यवहार न करे । ( ३ ) ब्याहके समय तीन दिनतक ' गौरव ' जिमाने का और चौथे दिन ' वैरोठी ' जिमानेका ठहराव था, उसके स्थानमें यह ठहराव किया जाता है कि, एक दिन ' गौरव करना और एक दिन ' वरोठी' करना । बरोठी कन्याके बापके घर ही हो और उसके लिए वरवाले १०१) रु. कन्याके बापको दे दें । " + यहाँ श्रीधरणेंन्द्रपार्श्वनाथजीकी अलौकिक मूर्तिके दर्शन * इसका मतलब यह है कि बाहर गामवाले रुपयोंका लालच देकर कन्याएँ ले जाते थे जिसके कारण कन्याविक्रयका अधिक जोर हो गया था । दूसरा शहरों वाले कन्या ले तो जाते हैं परंतु देते नहीं हैं जिससे अपने समुदायकी कन्या वहाँ चली जाती है और अपने लड़के कुँवारे रह जाते हैं । यह भी एक कारण था । १ 1- बरात जिमाना; २-वरकी तरफ़से बेटीवालोंको जिमाना; दो और भी ठहराव हैं, मगर वे अनुपयोगी समझ कर छोड़ दिये गये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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