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________________ आदर्श जीवन। २३३ उपदेशामृतका पान करनेके लिए यहाँ अनेक अन्य धर्मावलंबी मांसमदिराका उपभोग करनेवाले भी आया करते थे। उनके हृदयोंपर आपके उपदेशने पूरा असर किया और अनेकोंने मांस मदिराकी, आपके सामने ही, प्रतिज्ञा लेली। सुरवाड़ेसे विहार करके आप वणछरा पधारे । वहाँ उस इलाकेके ७० ग्रामोंके दशा श्रीमालियोंमें जो फूट थी वह आपके उपदेशसे दूर हुई और उन लोगोंने आपके उपदेशसे कई सामाजिक कुरितियोंको भी दूर कर दिया। ___ कन्याविक्रयकी भयंकर और घातक चाल जैन समाजमें प्रायः देखी जाती है। इसके भयंकर परिणाम भी प्रायः हुए हैं और होते हैं मगर बहुत कम धर्मोपदेशक और अन्यान्य मुनिराज इस ओर लक्ष देते हैं। आपने इसपर खास लक्ष्य दिया था और देते हैं। आपके उपदेशसे यह घातक प्रथा कई स्थानोंसे उठ गई है। वणछरामें भी इस प्रथाका और इसके साथ ही, जिन अनेक बुरे रिवाजोंकों जोर था वे सभी, बंद हो गये या उनमें परिवर्तन हो गया। आपके उपदेशसे वणछरामें मिले हुए दशा श्रीमालियोंके पंचोंने जो सुधार किये उनकी नकल यहाँ दी जाती है। " संवत् १९६८ का कार्तिक बुदी ४ शुक्रवार श्रीदशा ओसवालके पंच समस्त नीचे हस्ताक्षर करनेवाले मौजे वणछरा मुकामपर ठहराव करते हैं । वे नीचे प्रमाणे । (१) हमारी जातिमें कन्याविक्रयका रिवाज पहलेसे है वह आजतक कायम रहा । उसके लिए श्रीमुनि महाराज श्री श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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