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आदर्श-जीवन ।
कुछ बोल न सके । चुपचाप भाईके साथ ही बड़ोदे लौट आये ।
यद्यपि महाराज साहब विहार कर गये थे तथापि उनके शिष्य मुनिराज श्रीहर्षविजयजी महाराज वहीं थे। दो तीन साधु बीमार हो गये थे इसलिए उनकी सेवाशुश्रूषा करनेके लिए आचार्य महाराज उन्हें छोड़ गये थे । इसलिए व्याख्यान सुननेके लिए नियमित रूपसे आप जाते रहते थे। मुनि श्रीहर्षविजयजी महाराजके उपदेश बालजीवोंके साध्य मोहरोगको नष्ट करनेके लिए रसायन थे । इसलिए रातके समय भी अनेक भव्य जीव उनके पास आया करते थे। आप भी जाया करते थे।
एक दिन आपके सिवा अन्य कोई श्रावक नहीं आया था। मौका देख आपने अपने हृदयकी भावना कही। उन्होंने इस भावनाको पल्लवित किया और समय पर दीक्षा दिलानेका भी आश्वासन दिया । - एक महीनेके बाद उनका भी वहाँसे विहार हुआ। अपने भाईके साथ आप भी उनके साथ छाणी गये। मुनि श्रीहर्षविजयजी महाराजके उपदेशसे और संगसे आपके हृदयमें कुछ विशेष निर्भयता आमई थी । इसलिए आपने भाईसे कहाः" कल स्कूलकी छुट्टी है, इसलिए यदि आप इजाजत दे तो मैं महाराज साहबके साथ अगले गाँवतक विहार में जाऊँ। कलशामको घर पहुँच जाऊँगा।"
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