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________________ २०२ आदर्श जीवन । wwwmumwwwww vvvwho--- - थे। पैंतीस घर एक तरफ थे और शेष दूसरी तरफ । झगडेको मिटानेके लिए अनेक मुनिराजोंने परिश्रम किया परन्तु कोई फल नहीं हुआ। होता तो तब जब झगड़ेकी काललब्धि समाप्त हो गई होती! अब वह समाप्त हो चुकी थी और उसका यश आपहीको बदा था । ___ आपने लोगोंको आपसी कलह मेटनेका उपदेश दिया। उपदेशको सुन उनके मन पसीजे । उन्होंने आपको ही न्यायाधीश नियत कर जो प्रतिज्ञापत्र लिख दिया, उसकी नकल यहाँ दी जाती है। "परम पूज्य १०८श्रीमहामुनिराज श्रीवल्लभविजयजी महाराज साहब । जोग लि. पालनपुर० तपगच्छके ओसवाल श्रीमाली महाजन समस्त । यहाँ हमारे आपसमें तकरार है । वह बाबत, निकाल करनेके लिए, हमने आप साहबको सौंपी है। इसलिए आप साहब, सबकी हकीकत सुनकर जो फैसला कर देंगे, वह हमको कबूल मंजूर है और उसके मुजिब हम वर्ताव करेंगे। उसमें कसर नहीं करेंगे । मिति (गुजराती) सं १९६५ का ज्येष्ठ सुदी ४" यह मूल गुजरातीका अनुवाद है । इसके नीचे करीब नव्वे पुरुषोंके हस्ताक्षर हैं। आपने जो फैसला दिया उसकी नकल नीचे दी जाती है “ नमोहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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