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आदर्श जीवन।
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. शामको पालनपुरके कई श्रावक बड़ोदावालोंके डेरेपर पहुँचे
और हाथ जोड़ कर कहने लगे,-" भाई साहब आप हमारी मदद कीजिए, जिससे हम महाराज साहबसे यहीं चौमासा करनेकी विनतीको स्वीकार करा सकें। महाराज साहबका यहाँ चौमासा होना बहुत जरूरी है। यहाँके संघका बड़ा उपकार होगा। आदि।" .. बड़ोदावालोंका संदेह विश्वासमें बदल गया। उन्होंने सलाह की कि खीमचंदभाई आदि पाँच सात आदमी यहाँ रह जायँ, जो महाराज साहबको यहाँसे विहार कराके ही निकलें। दूसरे अभीसे चले जायें। . दो दिनके बाद आपने मोतीविजयजी महाराजको वहाँसे विहार करवा दिया। कारण आपने मुनिमंडलके साथ यह स्थिर कर लिया था कि, सबका चौमासा एक ही साथ दादाके चरणों में सिद्धाचलजीमें-हो । धीरे धीरे सभी वहाँ पहुँच जायँगे; मगर ज्ञानी महाराजने तो कुछ और ही देखा था।
चौथके दिन व्याख्यानमें, आपने पंचमीके दिन विहार करनेकी इच्छा प्रकट की और कहा कि, हम भोयणीमें गुरुदेवकी जयन्ती मनाना चाहते हैं । श्रावकोंने साग्रह वहीं की जयन्ती करनेकी विनती की। आपको वह स्वीकारनी पड़ी। श्रावकोंने कहा था आपके विराजनेसे अनेक उपकार होंगे। सो हुए। करीब बीस बरससे पालनपुरके संघमें दो धड़े हो रहे
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